बलूचिस्तान में चल रही अशांति केवल पाकिस्तान की आंतरिक समस्या नहीं रही, बल्कि अब इसमें चीन, अफगानिस्तान और बलूच-पश्तून विद्रोही गुटों की भूमिका भी जुड़ चुकी है। पाकिस्तान इसे लॉ एंड ऑर्डर का मामला बताकर हल नहीं कर सकता, क्योंकि इस संघर्ष की जड़ें ऐतिहासिक अन्याय, संसाधनों की लूट और बाहरी शक्तियों के हितों में गहरी हैं।
बलूचिस्तान: आजादी की लड़ाई या क्षेत्रीय संघर्ष?
बलूचिस्तान में दशकों से संघर्ष जारी है, क्योंकि वहां के लोग स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं। बलोच विद्रोही गुटों का मानना है कि जब तक उन्हें अपनी आजादी नहीं मिलेगी, तब तक शांति भी नहीं होगी। यह संघर्ष 1947 से जारी है, जब जिन्ना ने कलात के नवाब को सेना की ताकत से पाकिस्तान में विलय करने पर मजबूर किया था।
पाकिस्तान ने चीन को क्यों बुलाया?
जब पाकिस्तानी हुक्मरानों के नियंत्रण से बलूच विद्रोह बाहर होने लगा, तो उन्होंने चीन को निवेश के नाम पर बलूचिस्तान बुला लिया। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) इस निवेश का प्रमुख हिस्सा बना, लेकिन बलूच इसे अपनी संसाधनों की लूट मानते हैं।
CPEC: निवेश या बलूचिस्तान का शोषण?
CPEC पाकिस्तान के लिए एक बड़ा आर्थिक सौदा था, जिसमें चीन ने 60 अरब डॉलर का निवेश किया। लेकिन बलूच अलगाववादियों के लिए यह परियोजना केवल उनकी प्राकृतिक संपदाओं की लूट थी, जिससे पाकिस्तान की सेना और राजनीति को फायदा हुआ, लेकिन स्थानीय लोगों को कुछ नहीं मिला।
बलूच विद्रोही इसे औपनिवेशिक शोषण मानते हैं और CPEC के खिलाफ हिंसक विरोध कर रहे हैं।
CPEC के खिलाफ बलूच विद्रोहियों के हमले
बलोच विद्रोही गुटों ने चीन के निवेश को रोकने के लिए कई बड़े हमले किए:
- 2018 – कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला
- 2019 – ग्वादर के पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल पर हमला
- 2022 – कराची विश्वविद्यालय में कन्फ्यूशियस संस्थान पर आत्मघाती हमला
- 2023 – ग्वादर में चीनी इंजीनियरों पर हमला
- 2024 – दासू में चीनी इंजीनियरों के काफिले पर आत्मघाती हमला
बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) का मजीद ब्रिगेड CPEC को नष्ट करने के लिए विशेष रूप से हमले कर रहा है।
अफगानिस्तान की भूमिका: बलूच विद्रोह में नया मोर्चा?
बलूचिस्तान का संघर्ष अफगानिस्तान से अलग नहीं किया जा सकता। बलूच और पश्तून समुदाय सांस्कृतिक और पारिवारिक रूप से जुड़े हैं। पाकिस्तान आरोप लगाता रहा है कि बलूच विद्रोही अफगानिस्तान में अपने ठिकाने बनाकर पाकिस्तानी सेना पर हमले करते हैं।
पाकिस्तानी सेना के मुताबिक, हाल ही में जाफर एक्सप्रेस की हाईजैकिंग के दौरान आतंकवादी अफगानिस्तान में अपने मास्टरमाइंड्स से संपर्क में थे।
अफगानिस्तान और बलूच विद्रोहियों के बीच बढ़ती निकटता पाकिस्तान के लिए एक नया सिरदर्द बनती जा रही है।
क्या पाकिस्तान बलूचिस्तान को संभाल पाएगा?
बलूचिस्तान में बढ़ते बाहरी प्रभाव और अंदरूनी असंतोष ने इस मुद्दे को पाकिस्तान के नियंत्रण से बाहर कर दिया है।
- चीन अपने निवेश की सुरक्षा के लिए पाकिस्तान पर दबाव डाल रहा है।
- अफगानिस्तान के साथ पाकिस्तान का तनाव बढ़ता जा रहा है।
- बलूच और पश्तून विद्रोही मिलकर एक बड़े आंदोलन की ओर बढ़ रहे हैं।
यह स्पष्ट है कि पाकिस्तान अब बलूचिस्तान की समस्या को अकेले हल नहीं कर सकता। अगर उसे इस संकट को सुलझाना है, तो उसे चीन, अफगानिस्तान, और बलूच-पश्तून विद्रोहियों के हितों को संतुलित करना होगा।
क्या पाकिस्तान इस आग को बुझा पाएगा, या बलूचिस्तान का संघर्ष और भड़कता जाएगा?