जो श्रद्धालु अब तक कुंभ में शामिल नहीं हो पाए या कल्पवास का अवसर नहीं मिला, वे महाशिवरात्रि पर संगम तट पर स्नान कर व्रत रखते हुए एक दिन का कल्पवास कर सकते हैं। इसके लिए त्रयोदशी तिथि को केवल एक समय भोजन ग्रहण करें और शिवरात्रि के दिन स्नान के बाद व्रत एवं कल्पवास का संकल्प लें।
शिवरात्रि शिव और शक्ति के पावन मिलन का विशेष पर्व है। वैसे तो हर माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी का संयोग शिवरात्रि कहलाता है, लेकिन फाल्गुन माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। यह दिन भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह का पावन अवसर माना जाता है।
प्रयागराज पहुंचने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह शिवरात्रि और भी खास है, क्योंकि इसी दिन महाकुंभ का अंतिम शाही स्नान भी होगा। कई अखाड़े माघ पूर्णिमा के स्नान के बाद ही विदा हो चुके हैं, लेकिन शिवरात्रि के दिन महाकुंभ का आधिकारिक समापन होता है। इस अवसर पर कुछ अखाड़े संगम में स्नान करते हैं, जिसके बाद महाकुंभ की विदाई की औपचारिक घोषणा की जाती है।