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महाकुंभ 2025: 45 दिन, 66 करोड़ स्नान – चुनावी समीकरणों पर गूंज?

महाकुंभ 2025: 45 दिन, 66 करोड़ स्नान

प्रयागराज के संगम तट पर गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती का पवित्र जल अब सिर्फ आस्था तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसकी गूंज सियासत के गलियारों तक भी पहुंच रही है। 45 दिन के भीतर 66 करोड़ 30 लाख श्रद्धालुओं ने महाकुंभ में डुबकी लगाई, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक आंकड़ा है। लेकिन असली सवाल यह है – क्या इस महाकुंभ का असर 2025 में बिहार, 2026 में पश्चिम बंगाल, 2027 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव और 2029 के लोकसभा चुनाव तक दिख सकता है?

इतिहास और सियासत के रिश्ते

प्रयागराज, जिसे पहले इलाहाबाद कहा जाता था, हमेशा से राजनीतिक संकेतों का केंद्र रहा है। 2013 के कुंभ में, जब अशोक सिंघल ने कहा था कि नरेंद्र मोदी को लेकर ऐसा फैसला होगा जो इतिहास बदल देगा, तब शायद ही किसी ने अनुमान लगाया हो कि 2014 में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आएगी।

  • 2001: सोनिया गांधी ने कुंभ स्नान किया, तीन साल बाद यूपीए सरकार बनी, जिसने दस साल तक देश पर शासन किया।
  • 2019: लोकसभा चुनाव से 15 दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रयागराज के अर्धकुंभ में डुबकी लगाई और सफाई कर्मचारियों के पैर धोकर बड़ा संदेश दिया। इसके बाद भाजपा ने 303 सीटों के ऐतिहासिक आंकड़े को छू लिया।

महाकुंभ और 2029 तक की चुनावी सियासत

अब सवाल यह उठता है कि क्या महाकुंभ 2025 भी इसी तरह की चुनावी लहर पैदा कर सकता है? दिलचस्प यह है कि जिस देश में 2024 के लोकसभा चुनाव में 80 दिनों में 64 करोड़ 40 लाख लोगों ने मतदान किया, वहीं 45 दिनों में 66 करोड़ से अधिक लोग प्रयागराज में आकर स्नान कर चुके हैं।

क्या यह महाकुंभ धार्मिक और सांस्कृतिक एकता से आगे बढ़कर 2029 तक की चुनावी दिशा तय करेगा? पश्चिम बंगाल, जहां गंगा सागर में गंगा का संगम होता है, वहां तक महाकुंभ का जल कलश भेजा गया है। यह धार्मिक चेतना को राजनीतिक जमीन पर कैसे बदलता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

इतिहास बताता है कि कुंभ केवल स्नान और आस्था का मेला नहीं, बल्कि सियासी हलचलों की प्रयोगशाला भी रहा है। क्या इस बार भी महाकुंभ राजनीतिक भविष्य की इबारत लिखने वाला है?

महाकुंभ और सत्ता का संगम: 42 साल बाद किसी प्रधानमंत्री ने किया स्नान

कुंभ सिर्फ आस्था का पर्व नहीं, बल्कि सियासी संकेतों का केंद्र भी रहा है। 2019 में 42 साल बाद किसी प्रधानमंत्री ने संगम में स्नान किया, जब लोकसभा चुनाव की घोषणा बस कुछ ही दिनों दूर थी। नरेंद्र मोदी से पहले इंदिरा गांधी ही ऐसी प्रधानमंत्री थीं, जिन्होंने 25 जनवरी 1966 को, पद संभालने के अगले ही दिन प्रयागराज कुंभ में संगम स्नान किया था।

कुंभ और चुनावी इतिहास

  • 1977: इमरजेंसी लागू करने के बाद इंदिरा गांधी फिर कुंभ पहुंचीं, लेकिन संतों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा। इसके कुछ महीनों बाद देश में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी।
  • 1989: फरवरी में कुंभ के दौरान संतों के सम्मेलन में यह ऐलान हुआ कि 9 महीने बाद राम मंदिर का शिलान्यास होगा।
  • 1999: चुनाव में सोनिया गांधी के विदेशी मूल का मुद्दा उठा, लेकिन 2001 में उन्होंने प्रयागराज कुंभ में संगम स्नान किया। इसी दौरान वीएचपी ने अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर का मॉडल भी सार्वजनिक किया।
  • 2013: प्रयागराज कुंभ में 7 फरवरी को धर्म संसद के दौरान संतों ने **नरेंद्र मोदी के नाम

चुनाव से पहले पश्चिम बंगाल में बढ़ी सियासी हलचल – कुंभ बना नई जंग का केंद्र?

पश्चिम बंगाल में चुनाव को अभी 14 महीने बाकी हैं, लेकिन सियासी तापमान अभी से चढ़ने लगा है। ममता बनर्जी की बेचैनी इस बात से झलकती है कि उन्होंने प्रयागराज के महाकुंभ को “मृत्युकुंभ” कह दिया, और बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया।

कुंभ और बंगाल की सियासत

पिछले दिनों बीजेपी नेता नारायण चट्टोपाध्याय प्रयागराज के संगम से जल लेकर कोलकाता में बीजेपी दफ्तर पहुंचे। संदेश साफ था – बंगाल की राजनीति में कुंभ भी बड़ी भूमिका निभाने वाला है। बीजेपी नेता इस जल को राज्य में “शुद्धि” अभियान के तौर पर प्रचारित कर रहे हैं, तो वहीं ममता बनर्जी इसे हल्के में नहीं ले रही हैं।

जब ममता “खेला होबे” की बात दोहराती हैं, तो यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि आशंका और आत्मविश्वास के बीच झूलती उनकी रणनीति को भी दर्शाता है।

ध्रुवीकरण और 2019 के चुनावी आंकड़े

  • पश्चिम बंगाल की जनसंख्या:
    • 70% हिंदू
    • 30% मुस्लिम
  • 2019 लोकसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न (लोकनीति-CSDS के अनुसार):
    • बीजेपी को 57% हिंदू वोट मिले, जो 2014 के मुकाबले 36% अधिक थे।
    • टीएमसी को 70% मुस्लिम वोट मिले, जो 2014 की तुलना में 30% अधिक थे।
    • इस बदलाव का नतीजा यह हुआ कि बीजेपी 18 सीटें जीतने में सफल रही, जबकि टीएमसी 22 सीटों पर जीत दर्ज कर पाई (जो 2014 की तुलना में सिर्फ 4 सीट ज्यादा थीं)।

क्या बंगाल में भी दोहराया जाएगा “कुंभ चक्रव्यूह”?

महाकुंभ के धार्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव को पश्चिम बंगाल में राजनीतिक ध्रुवीकरण के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। बीजेपी ने जहां कुंभ जल को बंगाल की राजनीति से जोड़ दिया है, वहीं ममता बनर्जी इसे लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं।

आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या कुंभ 2025 की गूंज 2026 में बंगाल के चुनावी मैदान में सुनाई देगी?

क्या बंगाल में पहली बार बीजेपी बना पाएगी सरकार?

2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने जोरदार वापसी की। 42 में से 29 सीटें जीतकर उन्होंने अपना दबदबा बरकरार रखा, जबकि बीजेपी को 6 सीटों का नुकसान हुआ और वह 12 सीटों पर सिमट गई। लेकिन अब बंगाल की सियासत में दो अहम बातें चर्चा में हैं –

  1. केवल मुस्लिम वोटों का एकमुश्त समर्थन जीत की गारंटी नहीं है।
  2. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी का हिंदू वोट लगातार घट रहा है।

2026 में बीजेपी की जीत की संभावनाएं?

महाकुंभ से निकला हिंदू एकता का संदेश और ममता बनर्जी के कुंभ को “मृत्युकुंभ” कहने के बाद उपजा विवाद, 2026 के चुनाव में बीजेपी को नई रणनीति बनाने का आधार दे सकता है। अगर 16 साल के लगातार शासन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर जरा भी मजबूत हुई, तो क्या बंगाल में पहली बार बीजेपी सरकार बना सकती है?

बीजेपी के लिए 2024 का सबक

लोकसभा चुनाव में भारी जीत के बावजूद बीजेपी अपने दम पर पूर्ण बहुमत नहीं ला सकी। इसकी एक बड़ी वजह हिंदू वोटों में बिखराव रही।

  • मुस्लिम वोटों का 90% से ज्यादा हिस्सा विपक्ष के खाते में गया।
  • 2014 के बाद से बीजेपी का हिंदू वोट बैंक धीरे-धीरे बंटने लगा।

याद कीजिए, तब दो नारे गूंजे थे:

  • “बंटेंगे तो कटेंगे”
  • “एक हैं तो सेफ हैं”

महाराष्ट्र तक ये नारे सुनाई दिए, लेकिन दिल्ली चुनाव में गायब हो गए। सवाल यह है कि क्या अब बीजेपी को ऐसे नारों की जरूरत नहीं पड़ेगी?

महाकुंभ: आस्था बनाम राजनीति?

महाकुंभ ने एक नई लकीर खींच दी है –

  • एक तरफ वे हैं, जो इस पर सवाल उठा रहे हैं।
  • दूसरी तरफ वे, जो इसे आस्था से जोड़कर देख रहे हैं।

अगर बंगाल में सत्ता विरोधी लहर और ध्रुवीकरण की राजनीति तेज हुई, तो क्या 2026 में पहली बार भगवा लहराने का सपना बीजेपी पूरा कर पाएगी? या फिर ममता बनर्जी का ‘खेला’ फिर एक बार जीत की कहानी लिखेगा? अगले चुनाव तक यह सवाल बंगाल की राजनीति में सबसे अहम बना रहेगा।

क्या महाकुंभ ने हिंदू वोट को और संगठित किया?

2024 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम वोटों का झुकाव स्पष्ट था।

  • NDA को सिर्फ 8% मुस्लिम वोट मिला, जबकि INDIA गठबंधन को 65%।
  • यूपी में 92% मुस्लिम वोट INDIA गठबंधन को गया, कर्नाटक में 92%, बिहार में 87%, और बंगाल में 73%।
  • दूसरी तरफ, हिंदू वोटों में बंटवारा साफ दिखा।

बीजेपी की रणनीति: हिंदुत्व के सहारे जीत?

बीजेपी इस गणित को अच्छी तरह समझती है। जब मुस्लिम वोट एकतरफा विपक्षी दलों को जा रहा है, तो हिंदू वोट का ध्रुवीकरण ही उसकी सबसे बड़ी ताकत हो सकता है।

महाकुंभ जैसे आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक जुड़ाव को मजबूत करने का अवसर बनते हैं। यह सिर्फ आस्था तक सीमित नहीं रहता, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव भी छोड़ता है। 45 दिन में 66 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं के स्नान को सिर्फ धार्मिक पहलू से देखने की बजाय राजनीतिक दृष्टिकोण से भी परखा जा रहा है।

महाकुंभ: हिंदू एकता का नया मंच?

अब सवाल उठता है –
क्या महाकुंभ ने हिंदू वोट को और संगठित किया?

  • क्या हिंदुत्व का यह संगम 2025, 2026 और 2029 के चुनावों में असर दिखाएगा?
  • क्या इससे हिंदू वोटों का बिखराव रुकेगा और एकजुटता बढ़ेगी?

अगर हां, तो इसका सबसे बड़ा प्रभाव बिहार (2025), बंगाल (2026) और यूपी (2027) के विधानसभा चुनावों में दिख सकता है। **बीजेपी के लिए हिंदुत्व की यह लहर क्या बंगाल में सत्ता की पहली चाबी बनेगी? या फिर विपक्ष