TheHindiNews.in

1948 में पाकिस्तान ने भारत से डरकर कैसे बलूचिस्तान में सैन्यबल से कब्जा किया: संघर्ष की गहरी सच्चाई

1948 में पाकिस्तान ने भारत से डरकर कैसे बलूचिस्तान में सैन्यबल से कब्जा किया

बलूचिस्तान में हालिया जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हाईजैकिंग ने बलूचियों और पाकिस्तानी शासन के बीच लंबे समय से चले आ रहे संघर्ष को फिर से उजागर किया है। यह घटना बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) द्वारा उठाई गई स्वतंत्रता की मांग का परिणाम है। पाकिस्तानी शासन के द्वारा बलूचिस्तान के संसाधनों का शोषण, जातीय पहचान की अनदेखी, और सामाजिक-आर्थिक असमानताओं ने बलूच अलगाववाद को और भी बढ़ावा दिया है। साथ ही, चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) ने इस संघर्ष को और तीव्र किया है, जिसके चलते क्षेत्र में हिंसा और अस्थिरता में इजाफा हुआ है।

बलूचिस्तान में संघर्ष की जड़ें: 1947 से आज तक

बलूचिस्तान विवाद की जड़ें 1947 में भारत के विभाजन और बलूचिस्तान के पाकिस्तान में विलय से जुड़ी हैं। उस समय बलूच शासक, खान-ए-कलात ने पाकिस्तान में शामिल होने के फैसले के खिलाफ अपनी स्वतंत्रता का ऐलान किया था, लेकिन पाकिस्तान ने भारतीय प्रभाव के डर से बलूचिस्तान पर सैन्य बल से कब्जा कर लिया। यह जबरन विलय बलूचों के लिए एक ऐतिहासिक शोषण और असहमति की शुरुआत बन गया, जिससे आज तक संघर्ष जारी है।

पाकिस्तान की नीतियां और बलूच लोगों का प्रतिरोध

पाकिस्तानी शासन ने बलूचिस्तान में अपने नियंत्रण को स्थापित करने के लिए बार-बार सैन्य बल का सहारा लिया। इसके कारण बलूच लोग अपने अधिकारों से वंचित महसूस करने लगे और उन्होंने कई बार विद्रोह किया। इन विद्रोहों की मुख्य वजह आर्थिक शोषण, राजनीतिक हाशिए पर डालने की नीति और बलूचों की सांस्कृतिक पहचान की अनदेखी रही है। इसके साथ ही, पाकिस्तानी सेना द्वारा बलूचों के खिलाफ अत्याचारों के आरोपों ने स्थिति को और बिगाड़ा है।

चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) और बढ़ती अस्थिरता

CPEC, जो पाकिस्तान की आर्थिक योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, ने बलूचिस्तान में नए संघर्षों को जन्म दिया है। इस परियोजना के तहत बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है, और बलूच लोग इस परियोजना से पूरी तरह से बाहर हैं। CPEC के तहत होने वाली अवैध ज़मीनों की बिक्री, ग्वादर पोर्ट के निर्माण में बलूचों को दरकिनार किया जाना, और चीनी श्रमिकों का क्षेत्र में आना – इन सब ने बलूचों के विरोध को और मजबूत किया है।

बलूचिस्तान में अलगाववाद की बढ़ती लहर

बलूचिस्तान में कई अलगाववादी समूह जैसे बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (BLF) पाकिस्तान सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। ये समूह पाकिस्तान से अधिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता की मांग कर रहे हैं, खासकर बलूचिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों के शोषण को लेकर। इस संघर्ष में पाकिस्तानी सेना और सरकारी अधिकारियों के खिलाफ कई हमले हुए हैं, और अब इस संघर्ष में चीन भी शामिल हो चुका है।

बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति

बलूचिस्तान में मानवाधिकारों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। पाकिस्तानी सेना पर बलूचों के खिलाफ ज्यूडिशियल किलिंग्स, जबरन गायब करने और यातनाओं के आरोप हैं। इसके बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस संघर्ष को अधिकतर नजरअंदाज किया है। हालांकि, पाकिस्तान के खिलाफ कई मानवाधिकार संगठन और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से आवाजें उठती रहती हैं, लेकिन इस मुद्दे पर किसी खास कार्रवाई का अभाव है।

क्या हो भविष्य?

हालिया जाफर एक्सप्रेस ट्रेन हाईजैकिंग ने यह साबित कर दिया कि बलूचिस्तान में संघर्ष अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। यह घटना बलूच लोगों के संघर्ष और उनकी स्वतंत्रता की मांग को फिर से ताजा कर देती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि पाकिस्तान सरकार इस संघर्ष से निपटने के लिए क्या कदम उठाती है और क्या अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस मुद्दे पर कोई ठोस कार्रवाई करेगा।