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तेलंगाना में 400 एकड़ जंगल की कटाई: हरियाली की चीख और इंसानी लालच की कहानी

पहले सुबह की ठंडी हवा में पत्तियों की आवाज और चिड़ियों की चहचहाहट सुनाई देती थी। कांचा गाचीबोवली का जंगल, जो हैदराबाद के पास तेलंगाना में था, बहुत हरा-भरा और खूबसूरत था। लेकिन अब वहाँ सिर्फ बुलडोजर की आवाज और कटे हुए पेड़ों की उदासी बची है। यह कहानी है 400 एकड़ जंगल की कटाई की, जिसने प्रकृति को रुला दिया और लोगों को गुस्सा दिला दिया। आइए, इस घटना को आसान भाषा में समझें कि क्या हुआ, क्यों हुआ, और इसके पीछे कौन है।

1. पूरी कहानी: जंगल का अंत और झगड़े की शुरुआत

कांचा गाचीबोवली में बुलडोजर से कटते जंगल का दृश्य

30 मार्च 2025 की सुबह, जब सूरज अभी पूरी तरह नहीं निकला था, कांचा गाचीबोवली में 50 से ज्यादा बुलडोजर जंगल में घुस गए। यह जगह हैदराबाद विश्वविद्यालय (UoH) के पास रंगारेड्डी जिले में थी। यहाँ 400 एकड़ का जंगल था, जो शहर का "हरा फेफड़ा" कहलाता था। इसमें 17,700 से ज्यादा पेड़, 734 तरह के फूलों वाले पौधे, और बहुत सारे जानवर-पक्षी रहते थे। तेलंगाना सरकार ने इस जमीन को बेचने का फैसला किया ताकि यहाँ आईटी पार्क बने और 10,000 करोड़ रुपये कमाए जा सकें। लेकिन इस फैसले से इतना हंगामा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट को रोक लगानी पड़ी। 3 अप्रैल 2025 को कोर्ट ने कटाई बंद कर दी, पर तब तक आधा जंगल खत्म हो चुका था।

2. सभी बातें आसानी से

  • जंगल की कीमत: यहाँ 10 तरह के जानवर, 15 तरह के साँप-छिपकली, और 220 से ज्यादा चिड़ियाँ थीं।
  • कटाई का हिसाब: 10,000 से ज्यादा पेड़ काट दिए गए।
  • कानूनी बात: सरकार ने कहा कि यह जमीन उनकी है, जो मई 2024 में कोर्ट से मिली।
  • विरोध: छात्रों, पर्यावरण चाहने वालों, और आम लोगों ने इसका विरोध किया।

3. जानवरों और चिड़ियों का रोना

जंगल कटाई के दौरान रोते मोर और बेसहारा चिड़ियाँ

जंगल कटते वक्त का नजारा बहुत दुखी करने वाला था। सोशल मीडिया पर वीडियो आए, जिनमें मोर की चीखें और चिड़ियाँ अपने घोंसलों से भागते दिखे। हिरण बेघर हो गए। स्टार कछुए जैसे खास जानवरों का घर भी उजड़ गया। पर्यावरण चाहने वालों ने कहा कि 8 खास तरह के जानवर इस कटाई से खत्म हो गए। यह सिर्फ पेड़ों की कटाई नहीं, बल्कि एक पूरी दुनिया का खात्मा था।

4. विश्वविद्यालय के छात्रों का विरोध

विश्वविद्यालय के छात्रों का सड़कों पर जोरदार विरोध

हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए यह जंगल बहुत खास था। 30 मार्च को जब कटाई शुरू हुई, तो सैकड़ों छात्र सड़कों पर आ गए। उन्होंने नारे लगाए, "जंगल बचाओ, विश्वविद्यालय बचाओ।" पुलिस से उनकी लड़ाई हुई, और 50 से ज्यादा छात्रों को पकड़ लिया गया। उनका कहना था कि यह जमीन उनकी है और इसे बेचना गलत है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उन्हें उम्मीद मिली।

5. लोगों का गुस्सा

जंगल कटाई की खबर फैलते ही लोग बहुत नाराज हो गए। सोशल मीडिया पर #SaveKanchaGachibowli चलने लगा। जॉन अब्राहम और रश्मिका मंदाना जैसे फिल्मी सितारों ने सरकार से कटाई रोकने को कहा। दिल्ली में बीजेपी नेता तजिंदर बग्गा ने बोर्ड लगवाए, जिन पर लिखा था, “राहुल गांधी जी, तेलंगाना के जंगल काटना बंद करो।” लोग इसे “प्रकृति का कत्ल” कह रहे थे।

6. जंगल क्यों काटा गया?

तेलंगाना सरकार ने कहा कि यह कटाई तरक्की के लिए जरूरी थी। उनका प्लान था कि इस जमीन को बेचकर 10,000 करोड़ रुपये कमाएँ और कांचा गाचीबोवली को आईटी हब बनाएँ। सरकार इसे “फायदेमंद जमीन” बनाना चाहती थी। लेकिन कुछ लोगों का कहना था कि बिना पर्यावरण की जाँच के यह गलत और खतरनाक है।

7. जंगल काटने वाले कौन?

इस नुकसान के पीछे तेलंगाना स्टेट इंडस्ट्रियल इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्पोरेशन (TGIIC) का नाम आया। सरकार और मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी पर भी इल्जाम लगा, क्योंकि यह फैसला उनके समय में हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य सचिव संति कुमारी से जवाब माँगा।

8. पुलिस का रवैया

पुलिस ने सख्ती दिखाई। साइबराबाद पुलिस ने इलाके में 16 अप्रैल तक आने-जाने पर रोक लगा दी। छात्रों पर डंडे चलाए गए और कई को पकड़ लिया गया। TGIIC की शिकायत पर पुलिस ने केस दर्ज किया कि छात्रों ने गलत भीड़ जमा की। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के कहने पर पुलिस को नरमी बरतनी पड़ी।

9. सुप्रीम कोर्ट की भूमिका

3 अप्रैल 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने खुद कटाई पर रोक लगा दी। कोर्ट ने इसे “चिंता की बात” कहा और तेलंगाना हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार से इलाके की जाँच करने को कहा। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि बिना पर्यावरण जाँच के यह क्यों किया गया। यह फैसला छात्रों और पर्यावरण चाहने वालों के लिए राहत लेकर आया।

10. केंद्र की प्रतिक्रिया

केंद्र सरकार भी चुप नहीं रही। पर्यावरण मंत्रालय ने तेलंगाना सरकार से रिपोर्ट माँगी और जंगल बचाने के कानून के तहत कार्रवाई करने को कहा। पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इसे “गलत” बताया और जल्दी जवाब माँगा।

11. राजनीतिक झगड़ा

यह मामला राजनीति का मैदान बन गया। बीजेपी और बीआरएस ने कांग्रेस सरकार पर हमला किया। बीआरएस नेता केटीआर ने कहा कि अगर उनकी सरकार आएगी, तो यहाँ बड़ा ईको-पार्क बनाएँगे। बीजेपी ने इसे कांग्रेस की “प्रकृति के खिलाफ नीति” कहा।

12. नया प्रस्ताव

विरोध और कोर्ट की डाँट के बाद सरकार ने नया रास्ता चुना। अब उसने इस 400 एकड़ को “दुनिया का सबसे बड़ा ईको-पार्क” बनाने की बात कही। लेकिन लोग इसे “नुकसान के बाद की सफाई” मान रहे हैं और भरोसा नहीं कर रहे।

निष्कर्ष: प्रकृति की पुकार क्यों नहीं सुनी गई?

यह कहानी सिर्फ 400 एकड़ जंगल कटने की नहीं, बल्कि इंसान के लालच और प्रकृति की लड़ाई की है। छात्रों का हौसला, लोगों का गुस्सा, और जानवरों की चीखें बताती हैं कि तरक्की के नाम पर कितना कुछ खोया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की रोक और केंद्र की सख्ती के बाद सवाल है कि क्या यह जंगल फिर से हरा होगा? इसका जवाब वक्त ही देगा।

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