Hariyali Teej 2025 भारत में महिलाओं के लिए एक खास और शुभ पर्व है, जिसे खासतौर पर सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए मनाती हैं। यह त्योहार सोलह श्रृंगार, हरे वस्त्र, मेहंदी और झूला झूलने की परंपरा के साथ भक्ति और उल्लास का संगम है। Hariyali Teej 2025 का पर्व 31 जुलाई को मनाया जाएगा। इस दिन महिलाएं निर्जल व्रत रखकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं। परंपरा से जुड़ने और नारी शक्ति को सम्मान देने का यह अवसर बेहद खास होता है – तो जानें इसकी सभी रस्में और महत्व!
Hariyali Teej 2025 क्या है और यह क्यों मनाई जाती है?
Hariyali Teej 2025 उत्तर भारत में महिलाओं द्वारा बड़े श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाने वाला त्योहार है। यह पर्व श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को आता है, जब प्रकृति हरियाली से भर जाती है, hence the name “Hariyali” (हरियाली)। वर्ष 2025 में, यह पावन पर्व 31 जुलाई, गुरुवार को मनाया जाएगा।
इस दिन महिलाएं विशेष रूप से अपने पति की लंबी उम्र और सुखद वैवाहिक जीवन की कामना के लिए व्रत रखती हैं। यह दिन देवी पार्वती और भगवान शिव के पुनर्मिलन की याद में मनाया जाता है, जिनकी प्रेम कहानी समर्पण और तपस्या की प्रतीक है।
इस अवसर पर महिलाएं पारंपरिक हरे वस्त्र पहनती हैं, झूला झूलती हैं, गीत गाती हैं और लोक नृत्य करती हैं। त्योहार में धार्मिक आस्था, प्राकृतिक सौंदर्य और स्त्रीत्व का उत्सव एक साथ जुड़ता है।
सोलह श्रृंगार का Hariyali Teej 2025 में महत्व
सोलह श्रृंगार भारतीय संस्कृति में नारी सौंदर्य और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है, और हरियाली तीज के अवसर पर इसका विशेष महत्व होता है। सोलह श्रृंगार के अंतर्गत स्त्रियां 16 प्रकार के श्रृंगार करती हैं — जैसे बिंदी, सिंदूर, चूड़ियां, मेहंदी, बिछुआ, नथ, काजल, गजरा, और अन्य आभूषण।
हर एक श्रृंगार किसी न किसी शुभता और सौभाग्य का प्रतीक होता है। जैसे, मेहंदी पति के प्रेम का प्रतीक होती है, सिंदूर विवाह का चिन्ह होता है, और चूड़ियां महिला की सौभाग्यता की द्योतक मानी जाती हैं।
Hariyali Teej 2025 में महिलाएं पारंपरिक हरे रंग के वस्त्र पहनकर देवी पार्वती की पूजा करती हैं और सोलह श्रृंगार कर अपने सौंदर्य व सुहाग को समर्पित भाव से सजती हैं। यह श्रृंगार केवल सजने-संवरने का नहीं बल्कि एक आध्यात्मिक साधना का रूप है।
हरियाली तीज से जुड़ी पौराणिक कथा
हरियाली तीज का पौराणिक महत्व अत्यंत गहरा है। इसके पीछे की कथा देवी पार्वती और भगवान शिव के दिव्य प्रेम की है। कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए कई जन्मों तक कठोर तपस्या की थी। अंततः भगवान शिव ने पार्वती की भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।
कहते हैं कि यह पुनर्मिलन श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को हुआ था — और तभी से यह दिन हरियाली तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं देवी पार्वती के उसी संकल्प और श्रद्धा को याद करते हुए निर्जल व्रत रखती हैं।
Hariyali Teej 2025 में यह कथा हमें यह सिखाती है कि प्रेम, समर्पण और आस्था से हर इच्छित लक्ष्य पाया जा सकता है।
हरियाली तीज 2025 में व्रत का महत्व और विधि
Hariyali Teej 2025 में व्रत का विशेष महत्व है। इस दिन विवाहित महिलाएं सूर्योदय से पहले स्नान कर व्रत का संकल्प लेती हैं और पूरे दिन जल तक ग्रहण नहीं करतीं। यह व्रत पति की लंबी उम्र और सुखी वैवाहिक जीवन की कामना से जुड़ा हुआ है।
व्रत की प्रक्रिया में देवी पार्वती और भगवान शिव की पूजा की जाती है। महिलाएं मिट्टी या धातु की मूर्ति बनाकर उन पर पुष्प, हल्दी, चंदन, वस्त्र, और मेहंदी अर्पित करती हैं। पूजा के बाद महिलाएं लोकगीत गाती हैं, कथा सुनती हैं और झूले पर झूलती हैं।
Hariyali Teej 2025 में यह व्रत महिलाओं की आस्था, शक्ति और प्रेम का प्रतीक होगा। साथ ही, यह आधुनिक जीवन में भी पारंपरिक मूल्यों को जीवित रखने का माध्यम है।
हरियाली तीज 2025 में हरे रंग और झूले का महत्व
हरे रंग को हरियाली तीज से विशेष रूप से जोड़ा जाता है क्योंकि यह प्रकृति, उर्वरता और सौभाग्य का प्रतीक होता है। महिलाएं इस दिन हरे रंग की साड़ी या सूट पहनती हैं और अपने घरों या बाग-बगिचों में झूले लगाती हैं। यह झूला झूलने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है, जो मानसून के आगमन और स्त्री उत्सव से जुड़ी है।
झूला झूलते हुए महिलाएं पारंपरिक तीज गीत गाती हैं, जो देवी पार्वती की महिमा और विवाहिक जीवन की कहानियों पर आधारित होते हैं। यह न केवल मनोरंजन का हिस्सा होता है बल्कि एक प्रकार की सामाजिक एकता और उत्सवधर्मिता का भी प्रतीक होता है।
Hariyali Teej 2025 में झूले और हरे वस्त्रों की सजावट हमारे सांस्कृतिक मूल्यों और प्रकृति के साथ सामंजस्य को दर्शाएगी।
मेहंदी और लोकगीतों का खास स्थान
मेहंदी हरियाली तीज की परंपरा का अभिन्न अंग है। महिलाएं इस दिन हाथों और पैरों में सुंदर पारंपरिक डिजाइनों की मेहंदी लगवाती हैं। माना जाता है कि मेहंदी का रंग जितना गहरा होता है, पति का प्रेम उतना ही गहरा होता है। यह श्रृंगार का ही नहीं, भावनाओं और प्रेम का प्रतीक भी है।
साथ ही, लोकगीत और तीज के विशेष गीत जैसे “उत्तम भयो भादो मास”, “झूला पड़ा नीम के नीचे” आदि गाए जाते हैं। ये गीत महिला समुदाय को एकसाथ लाते हैं और पारंपरिक संस्कृति को जीवित रखते हैं।
Hariyali Teej 2025 में मेहंदी और लोकगीत आधुनिकता के साथ परंपरा को जोड़ने का जरिया बनेंगे, जिससे नई पीढ़ी भी इन रस्मों से जुड़ सके।
आधुनिक दौर में हरियाली तीज का स्वरूप
आज के युग में, जब महिलाएं ऑफिस और घर दोनों संभाल रही हैं, तब भी हरियाली तीज की महत्ता कम नहीं हुई है। अब यह पर्व केवल धार्मिक रूप तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह महिलाओं के सामूहिक सशक्तिकरण, सांस्कृतिक एकता और मानसिक शांति का अवसर भी बन चुका है।
महिलाएं अब सोशल मीडिया पर Hariyali Teej 2025 celebrations, अपने लुक्स और श्रृंगार शेयर करती हैं, मेहंदी कॉम्पिटिशन, ऑनलाइन पूजा सामूहिक रूप से आयोजित की जाती है। इसने त्योहार को न केवल जीवित रखा है, बल्कि आधुनिकता में नई जान फूंकी है।
इस बार Hariyali Teej 2025 का स्वरूप पारंपरिक और डिजिटल दोनों रूपों में एक नया अनुभव लेकर आएगा।
Hariyali Teej 2025: पूजा सामग्री की सूची
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देवी पार्वती और शिवजी की मूर्ति
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कुमकुम, हल्दी, चंदन
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हरे वस्त्र व हरे आभूषण
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मेंहदी की कोन
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16 श्रृंगार की सामग्री
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फल, मिठाई, पंचामृत
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झूला सजाने की सामग्री
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दीपक, धूपबत्ती, कपूर
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पूजा की थाली
इस पूजा सामग्री की व्यवस्था Hariyali Teej 2025 से पहले कर लेना व्रत को सफल और संपूर्ण बनाने में सहायक होगा।
निष्कर्ष: Hariyali Teej 2025 – परंपरा और प्रेम का उत्सव
Hariyali Teej 2025 केवल एक पर्व नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री जीवन की गरिमा, श्रद्धा और आत्मिक शक्ति का उत्सव है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि प्रेम, समर्पण, और विश्वास किसी भी रिश्ते की नींव है। चाहे वह देवी पार्वती का तप हो या आज की नारी का आत्मबल — हरियाली तीज इन सबका सुंदर मेल है।
2025 में जब आप इस पर्व को मनाएं, तो केवल रीति-रिवाज नहीं, उसके पीछे की भावना और परंपरा को भी आत्मसात करें। हरियाली तीज नारीत्व, प्रकृति और प्रेम की त्रयी है — जिसे हर युग में श्रद्धा के साथ मनाया जाता रहेगा।